अशोकबिन्दु::दैट इज..?!

बीए फाइनल की परीक्षा के बाद हम रात्रि में इस हेतु साधना करने लगे थे कि हमें अपना पिछला जन्म जानना है।
कुछ दिनों बाद हमें अर्द्धनिद्रा,सुस्त अवस्था,निद्रा अवस्था आदि में सोनभद्र स्थान व वहां की कुछ घटनाओं का आभास हुआ था।
इसके बाद हमे कर्नाटक/कर्णाअटक के कोलार आदि स्थानों का भी आभास हुआ।ऐसा काफी समय तक होता रहा।कुछ वर्षों बाद इसी श्रंखला में हमें मनपक्कम स्थान का आभास भी होना शुरू हुआ।ऐसा तब और ज्यादा जब हमारे खानदान में किसी की मृत्यु होने का समय आया।
हमने विभिन्न सूत्रों से कूर्मिक्षत्रियों /आदि कुटम्बियों/कुनबियों/कुलम्बियों आदि का भी इतिहास जानने की कोशिश की।
हमारे सूक्ष्म आभास हमें कौतूहल भरने लगें क्योकि वे हमारे पुरखों के अतीत की ओर संकेत करते थे।
हमें बाद में ज्ञात हुआ कि सोनभद्र व कोलार सोने के अपार भंडार छिपाए हुए हैं।

हमने यह भी जाना कि मौर्य काल में किसी राजा ने अयोध्या पर आक्रमण किया जिसमें अयोध्या के क्षत्रियों को अयोध्या से भागना पड़ा और जंगल जंगल भटकना पड़ा।विश्व में अन्यत्र अपना निवास स्थान बनाना पड़ा।
विजयनगर के सेनापति,राजपुरोहित,प्रथम वेद भाष्यकार आचार्य सायण ने तो यहां तक लिखा कि तुम्बीकूर्मि सर्वशक्तिमान होता है। जिस पर पहले से ही ऋग्वेद में एक श्लोक आता है।दयानंद सरस्वती ने भी इस पर लिखा है।
दिदिग अपने कबीला के साथ काबेरी नदी के पास अपन आवास बनाये थे। कूर्मा,कुर्बा जनजाति,चरवाह समुदायों का निबास कर्नाटक,आंध्रप्रदेश आदि रह है।पूरी दुनिया में वर्तमान में जो भी वंश है वे सब ऋषि कश्यप से हैं।
क्षत्रियों की एक शाखा स्वर्ण सम्बन्धी व्यवसाय से जुड़ी जो आगे चलकर स्वर्णकार या सुनार हो गयी। वर्तमान जो पिछड़ा,जनजाति आदि समुदाय हैं वे कभी क्षत्रिय ही अधिकांश थे। पहले दो ही वर्ण थे - ब्राह्मण व क्षत्रिय । जंगली व अन्य क्षेत्रों की बाड़ाबन्दी का विस्तार जब और तेज हो गया तो समाज की व्यवस्था के लिए दो अन्य वर्ण बनाये गए - वैश्य व शूद्र। इन चारों वर्णों के अलावा पांचवा वर्ण भी था जो अधिक शोषित व दलित था।
हम महसूस करते रहें हैं कि वर्तमान में देश व समाज को मजबूत करने,एकता स्थापित करने के लिए जातिवाद को कमजोर करना ही चाहिए लेकिन हम जानते हैं कि वर्तमान जातियां विभिन्न कुलों का परिणाम हैं जिनमें से अनेक जातियों का अतीत एक ही है। आज यह सब बातें करना हमें बेढंगा लगता है।यह भी सत्य है कि हमें जातिवादी,मजहबी व्यवस्त से निकल कर अब मानवता रूहानी आंदोलन से जुड़ने से ही हम विश्व व मानवता का भला कर सकता है।
सत्य सत्य होता है।यथार्थ यथार्थ होता है। वह पसन्द नापसन्द पर आधारित नहीं होता। वह इच्छा अनिच्छा पर आधारित नहीं होता। अतीत के सत्य में हम इतना न उलझ जाएं कि हम अपने वर्तमान व भविष्य को जीना ही छोड़ दें। ऐसे में पूर्वजन्म को जानने व उस पर पुनर्विचार से हमारी जीवन यात्रा को अवरोध भी पैदा हो सकते हैं,नहीं भी हो सकते हैं। बौद्ध पंथ में जातक कथाओं से हालांकि हमें काफी प्रेरणा मिलती है। पिछले जन्मों के संस्कारों का प्रभाव का हम लाभ उठा सकते हैं जैसे कि हम जिस क्लास तक का ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं उसका अभ्यास मात्र ही सिर्फ काफी है।शेष हम उसके आगे की शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
इस सब के बाबजूद हम कहना चाहेंगे कि हमें जो अबसर प्राप्त हो रहे हैं,उनसे चूकना नहीं चाहिए।हमारे अपने आकाश तत्व से हमें जो मैसेज प्राप्त होते रहते हैं,उन्हें हमें पकड़ कर रखना चाहिए। जो हमारी निजता,आत्मियता ,स्वतः,निरन्तरता को प्रकटन का अवसर देता है। समाजशास्त्र में आदम जातियों के टोटम मिलते हैं।अर्थात आदिम जातियों की पहचान अन्य जीव जंतुओं से होती थी।हर वंश या कबीला के पहचान का प्रतीक कोई न कोई पशु या पक्षी होता था। कछुआ य कश्यप अनेक कुलों का पहचान प्रतीक बना। कश्यप ऋषि भी इस श्रंखला में मानव जाति के विकास के आधार बने। कुछ ने तो मध्य एशिया को कश्यप देश ही कह डाला। भूमध्य सागरीय क्षेत्र के आसपास तो कुछ जनजाति अब भी अपना पूर्वज दूसरी धरती से आये प्राणी को मानते हैं जो कि कच्छप था।जिसे मत्स्य मानव भी बताया जाता है।
सोनभद्र व कोलार पर कुछ न यहां,यह मात्र भ्रम है। वर्तमान मानव सभ्यता की जड़ एक ही है। योरोप में कुछ कबीले ऐसे भी हैं जो राम को हमारे हिसाब से तो नहीं मानते लेकिन मानते हैं।वहां कुछ तो राम को अपने यहां का निवासी मानते हैं। सम्भवतः ऐसा इसलिए हो कि वे अतीत के सत्य को भुला चुके हैं।
प्रलय से पूर्व मनु को जब आभास हुआ प्रलय का। उन्होंने बचाव1 की तैयारी कर,नौका आदि बनाकर कुछ जीव जंतुओं ,मनुष्यों को साथ लेकर हिमालय पर अपना स्थान बनाया।सवाल उठता है कि इससे पहले वह कहां बसते थे?
Alka jain
01-Mar-2023 06:12 PM
Nice 👍🏼
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
28-Feb-2023 12:02 PM
Nice
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